Sunday, June 14, 2009

१४ जून काव्य गोष्ठी और नाटक वाचन/कार्यशाला

प्रिय मित्रों,

आशा है कि आपने मेरा पिछला पत्र पाकर अपने कैलेंडर में १४ जून की दोपहर पर गिल्ड का नाम लिख दिया होगा। यह कार्यक्रम दोपहर १ बजे से ५ बजे तक होगा। इसका स्थान ओकविल लायब्रेरी है, पता है:
1415 Third Line
Oakville, ON-L6M 3G2
यहाँ पहुँचने के लिये आप थर्ड लाइन नार्थ का एक्ज़िट लीजिये और उस पर ही यह लायब्रेरी और रिक्ररियेशन सेंटर आपको दिखाई देगा..सीधे हाथ की ओर। कार्यक्रम "प्रोग्राम रूम" में होगा।

इस लायब्रेरी में पहले भी कार्यक्रम हुआ था, यहाँ पार्किंग नि:शुल्क है। कार्यक्रम समय पर समाप्त करना पडेगा अत: ठीक समय पर इसे शुरू भी करना ही पडॆगा अत: सब से अनुरोध है कि आप १ बजे तक पहुँच जायें। कार्यक्रम का एजेंडा पिछ्ले पत्र में था।
कवि सम्मेलन में आपकी रचनायें सुनने और निकट भविष्य में आने वाले कार्यक्रम के लिये आपके विचार सुनने का इंतज़ार रहेगा।
अपने आने की सूचना शीघ्र दें।
लता जी को इस कार्यक्रम के आयोजन के लिये पुन:धन्यवाद!!

शैलजा

4 comments:

  1. हम तो यहाँ दिल्ली मैं है ... और यहाँ तो अभी शाम के ७ बजे हैं हम तो चौंक ही गए थे की यहाँ कैसी पोस्ट है जिसमे १४ जून के दोपहर १ बजे के कार्यक्रम का बुलावा १४ जून को शाम साधे सात बजे दिया जा रहा है. फिर पोस्ट पढ़ी तो बात समझ आई खैर हम तो आ नहीं पायेंगे साहब इतने सोर्ट नोटिस पर .... पर कविगोष्ठी है तो एक कविता टिप्पणी मैं ही टिप्पिया देते हैं हो सके तो साथियों को दिल्ली वालों की और से पढ़ कर सुना देना...

    गांव वाले घर में अम्मा, सब कुछ थी कुछ भी न होकर.

    सुबह सवेरे जग जाती थी, गाय धू कर दूध बिलोकर.
    गांव वाले घर में अम्मा, सब कुछ थी कुछ भी न होकर.
    दूध मलाई और पिटाई, तक उसके हाथों से खाई.
    रोज सवेरे वह कहती थी, उठो धूप सर पे है आई.
    उपले पाथ रही अम्मा को, याद करूं हूं अब मैं रोकर.
    गांव वाले घर में अम्मा, सब कुछ थी कुछ भी न होकर.


    बापू, चाचा, ताऊ दादा, सबकी एक अकेली सुनती.
    गलती तो बच्चे करते थे, पर अम्मा ही गाली सुनती.
    रोती रोती आंगन लीपे, घूंघट भीतर लाज संजोकर.
    गांव वाले घर में अम्मा, सब कुछ थी कुछ भी न होकर.
    काला अक्षर भैंस बताती, लेकिन राम चौपाई गाती.
    पूरे घर के हम बच्चों को, आदर्शों की कथा बताती.
    सत्यवादी होने को कहती, हरिश्चंद्र की कथा बताकर.
    गांव वाले घर में अम्मा, सब कुछ थी कुछ भी न होकर.


    पढीं लिखीं बहुंओं को अम्मा, बस अब तो इतना कहती है.
    औरत बडे दिल की होवे है, इस खातिर वह सब सहती है.
    पेड भला क्या पा जाता है, अपने सारे फल को खोकर.
    गांव वाले घर में अम्मा, सब कुछ थी कुछ भी न होकर.

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  2. वाह जी! वाह क्या खूब याद दिलाई दिल ही छ्लक आया आँसुओं का रूप लेकर।अम्मा का वास्तविक धरालतीय चित्रण करती इस कविता का एक एक अक्षर जड़वाने लायक है।सुन्दर कविता के लिये बधाई।

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  3. कार्यक्रम की विस्तुत जानकारी का भी इंतज़ार है।

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  4. हम भी याद करे अम्मा को अपने आँसू धोकर

    बहुत ख़ूब, माँ का चित्रण करती यह कविता बहुत अच्छी लगी।

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