Saturday, June 13, 2009

कवि गोष्ठी मई 24, 2009 - आईये सुनें

मई २४, २००९ को मिसीसागा में इन्दु शर्मा ने अपने निवास पर एक काव्य संध्या का आयोजन किया। आयोजन से पहले हिन्दी राइटर्स गिल्ड के भावी कार्यक्रमों की चर्चा हुई। इस दिन इन्दु शर्मा और लता पाण्डे ने हिन्दी राईटर्स गिल्ड की सदस्यता ली। हम दोनों को बधाई और धन्यवाद देते हैं। समीर लाल ने भी सुमन कुमार घई को फोन से सूचित किया है कि उन्हें भी सदस्य समझा जाए और अगली सभा या उससे पहले ही वह आवेदन पत्र भर देंगे।
जैसा कि पहली भी कुछ बैठकों में नाटक मंचन की चर्चा हुई है, वही चर्चा पुनः हुई। पाराशर गौड़ ने प्रस्तावित किया कि नाटक मंचन एक गंभीर विषय है और उसे पूरी तैयारी किए बिना करना भविष्य में नाटकों की लोकप्रियता को प्रभावित कर सकता है। जैसा कि पहले भी प्रस्तावित किया गया था कि नाटक को रेडियो नाटक की तरह प्रस्तुत किया जाए। अन्य उपस्थित सदस्यों का भी विचार था कि इस विषय पर विचार होता रहना चाहिए परन्तु इस में न उलझ कर सितम्बर के प्रस्तावित कार्यक्रम पर भी विचार किया जाना चाहिए।


सितम्बर के कार्यक्रम की भी चर्चा हुई। कार्यक्रम की लम्बाई को देखते हुए सुझाव दिया गया कि हिन्दी राईटर्स गिल्ड को श्रोताओं के लिए आहार का इंतज़ाम करना चाहिए। इस लिए कार्यक्रम के लिए २० डालर की टिकट लगाई जाए।
कार्यक्रम के लिए धनोपार्जन की भी चर्चा हुई। लता पांडे ने सूचित किया की संभवतः वह Bell Canada से स्पांसरशिप ले सकती हैं परन्तु उसके लिए उचित कागज़ात की आवश्यकता होगी। भुवनेश्वरी पांडे भी धनोपार्जन का प्रयत्न कर रही हैं।
सुमन कुमार घई ने सुझाव दिया कि इस कार्यक्रम के लिए प्रकाशित की जाने वाली स्मारिका में भी विज्ञापन बेचे जा सकते हैं। उसकी कुछ उदाहरणार्थ प्रतियाँ घर के प्रिंटर पर बना कर विज्ञापन विक्रेता सदस्यों को दी जा सकती हैं।
उपरोक्त चर्चा के बाद अल्पाहार के लिए सभा विसर्जित हुई और उसके बाद गोष्ठी का कार्यक्रम आरम्भ हुआ।
इन्दु शर्मा ने सभी का स्वागत किया और संचालन करते हुए संदीप त्यागी को सरस्वती वन्दना गायन के लिए आमन्त्रित किया। संदीप जी ने अपनी सर्वप्रथम रचना संस्कृत में लिखी सरस्वती वन्दना गाई और उसके बाद में हिन्दी में भी सरस्वती वन्दना अर्पित की।
कविता सुनाने की शुरूआत उन्हीं से हुई। संदीप जी ने वीर रस की रचना परतंत्रता की शृंखलाएं कट गईं घनाक्षरी छंद में सुनाई। उन्होंने रचना सुनाते हुए कहा कि प्रायः वीर रस की रचना में सौन्दर्य का पुट नहीं होता है परन्तु उन्होंने बड़ी दक्षता से कविता कि बुनावट में सौंदर्य का भी चित्रण किया। उनकी दूसरी रचना उधर ही चलेंगे जिधर ले चले तू थी।
निर्मल सिद्धु की पहली कविता एक थी और दूसरी आध्यात्मिक कविता वो वृक्ष अभी भी शक्तिशाली है, थी
जसबीर कालरवी ने अपनी दो ग़ज़लें सुनाईं - वो जब मुझको पहन कर लौट जाते हैं, सुनो जसवीर मैं ढूँढने निकला हूँ न कवि न ग़ज़लगो
प्रीति धामने में अपनी रचना में व्यंग्यात्मक प्रश्न किया - हम क्या बूझें आप बताएँ, कवि क्यों करते कविताई और उनकी दूसरी कविता इतिहास की किताबों में रखी तितलियाँ थी।
सरन घई ने इस बार अपनी आध्यात्मिक गम्भीर रचना सुनाई जो कि भक्तिकाल के कवियों की रचनाओं से प्रेरित थी। उनकी दूसरी कविता सुख-दुःख थी।
पाराशर गौड़ की कविता लक्ष्य थी और दूसरी कविता विवशता थी।
मीना चोपड़ा ने अपनी अंग्रेज़ी की कविता का भावानुवाद खोजा है कभी तुमने अपनी खोयी हुई पहचान को सुनाई और उनकी दूसरी रचना ग़ज़लनुमा कविता सूरज को मुट्ठीयों में पकड़ने.. थी।
सदा की तरह इस बार भी लता पांडे की कविता छोटी थीं (भावों में नहीं, आकार में) इस लिए उन्हें तीन रचनाएँ सुनाने का आग्रह किया गया – उनकी कविताएँ थीं युद्ध के बाद, नया सूरज, सार्थकता।
भुवनेश्वरी पांडे ने सुगबुगाहट सुनाई और अपनी प्रकाशित पुस्तक डायल मी माधव से सत्य और असत्य पढ़ी।
विजय विक्रान्त ने अपनी पहली कविता में मानव की भाषा और शब्दों के चयन के महत्व बताया और उनकी दूसरी हास्य कविता गए बाल कटवाने गए हम वहाँ थी।
सुमन कुमार घई ने अपनी कविता क्षितिज रेखा मिट रही है सुनाई और अपनी पुरानी रचना मौन का पाठ किया।
निर्मल सिद्धु ने अन्त में संचालिका इन्दु शर्मा को कविता सुनाने के लिए आमन्त्रित किया। इन्दु शर्मा अपनी हास्य रचनाओं के लिए जानी जाती है। उनकी पहली रचना हास्य रचना नाईन वनः वनः थी और फिर उन्होंने दूसरे रंग में "कौन हो तुम" जो उनकी अपनी बेटी के प्रति भावनाएँ थी। श्रोताओं के आग्रह पर उन्होंने अपनी प्रसिद्ध रचना "चालू नम्बर वन" सुनाई।
सभा का विसर्जन इन्दु शर्मा ने भोजन के आमन्त्रण के साथ किया।
कवि सुनने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें

2 comments:

  1. काव्य जगत के लिए आपका ब्लॉग वाकई उपयोगी है।

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  2. बहुत आभार. अब टोरंटो में ही हूँ तो अगली बार से नियमित रहने का प्रयास करुँगा. कार्यक्रम की जानकारी लेकर अच्छा लगा.

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